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पैली भरोनी गीत / बैगा

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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तरी नानार नानी पे तरी नानार नानी। 2
बाय खूदन पैली सोहग पूरक तेली 2
दाई ओ दाई ये, मोय भूख लागीस,
दाई ओ दाई ये, मोय भूख लागीस,
मोर सी नेकों तोर बाबा सी जा,
 मोर सी नेकों तोर बाबा सी जा,
बाबा रे बाबा पे मोय भूख लागीस, बाबा रे
मोर सी नेकों पे तोर दादी सी जा मोर सी
दादी रे दादी पे मोय भूख लागीस 2
मोर सी नैको तोर आजी सी जा 2
दाई ओ दाई पायली नहीं भराय 2
सैला उधा करनी पयली भार देबी 2
दूल्हक बाबा चोरहा पे चोर चोर खाय 2
दूल्हक दादी चोरहा पे चोर-चोर खाय 2
दुल्हक आजी चोरही पे चोर-चोर खाय 2
दुल्हक बहन चोरही पे चोर-चोर खाय 2

शब्दार्थ – पयली – आधी किलो का माप, नैको=मुझे नहीं, चोरटा-चोर, मोर सी=मोर पास।

पैली (पयली) भरोसी एक रस्म है। एक सूपे में जगनी और तिल्ली रखकर (दोनों तिलहन) भरवाती है। तब यह गीत गाया जाता है। गीत दोसी! को संबोधित है।

दुल्हन की माँ कहती है- दोसी इन दुल्हा-दूल्हन को जगती और तिल्ली उधार दिलवा दो। इतना कहते ही वहाँ उपस्थित सारी महिलाओं को और तिल्ली बाँट दी जाती है। फिर गीत गाकर-जगनी और तिल्ली वापस माँग ली जाती है। तब गीत के माध्यम से दुल्हन कहती है। हे माँ! मुझे भूख लगी है। माँ बोली-बेटा! मेरे पास कुछ नहीं है, तुम अपने बाबा या पिता के पास जाओ। बाबा बोले-बेटी तुमने जो उधार दिया है, उसे वापस लो। तुम्हारी भूख शांत हो जाएगी। तब तुम्हारी पयली भर जायेगी। तुम चिंता मत करो। इस समय गीत चलता रहता है और जिनको जगनी-तिल्ली दी गई, वे वापस करते जाते है। आगे गीत में आजी और दादा से मज़ाक करते हैं, कुछ ने जगनी या तिल्ली वापस नहीं लौटाई है। तब कहा गया है- दूल्हा या दुल्हन के पिता चोर हैं, उन्होने जागती और तिल्ली चुरा ली है। इसी प्रकार आजा-आजी, बहन आदि भी चोर हैं, जिन्होने तेरे हिस्से की जगनी और तिल्ली चुरा ली है। इसलिए तेरी पयली पूरा भराई नहीं है, खाली रह गई है।

रस्म और गीत के माध्यम से दूल्हा और दुल्हन को व्यवहारिता की जो सीख दी गई है, वह अत्यंत करूणामयी है। दूल्हा-दुल्हन को जीवन में जितना मिले, उसी से काम चलाना है। किसी से कोई अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। अपनों से भी नहीं। तब ही अपना परिवार सुखी और स्वाभिमानी रह सकता है।