भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पोखरण 1998-3 / लाल्टू
Kavita Kosh से
धरती पर क्या सुंदर है
क्या कविता सुंदर है
इतने लोग मरना चाहते हैं
क्या मौत सुंदर है
मृत्यु की सुंदरता को उन्होंने नहीं देखा
सेकंडों में विस्फोट और एक लाख डिग्री ताप
का सूरज उन्होंने नहीं देखा
उन्होंने नहीं देखा कि सुंदर मर रहा है
लगातार भूख गरीबी और अनबुझी चाहतों से
सुंदर बन रहा हिंदू मुसलमान
सत्यम शिवम् नहीं मिथ्या घनीभूत
बार बार कोई कहता है
धरती जीने के लायक नहीं
धरती को झकझोरो, उसे चूरमचूर कर दो
कौन कह रहा कि
धरती पर कविता एक घिनौना ख़याल है