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पौ फाटी / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
पौ फाटी, सुणो, सुणीजै है
पग आंतै नुंअै उजास रा !
मन फीको हुयो अंधेरै रो,
हिव हरख्यो सरस सबेरै रो,
अब जाग्यो भाग बसेरै रो,
कंठां में पांख पंखेरू रै
सुर गूंजै है बिसवास रा !
ऊषा रो टीको माथै पर
सूरज सो हीरो साफै पर
किरणां रा गीत निछावर कर
बरदान उतरता आवै है
ईं धरती पर आकास रा !
दिन फिरग्यो सोना माटी रो
अलगोजो बाज्यो घाटी रो
जुग पळट्यो जड़ परिपाटी रो,
थै चालो, थां रै साथ बगै-
नित रूड़ा चरण विकास रा,
पौ फाटी सुणो, सुणीजै है
पग आंतै नुंअैं उजास रा !