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प्यारा-सा चाँद / चन्द्र गुरुङ
Kavita Kosh से
एक चाँद
पहाड़ी पर नज़र आता है
धीरे-धीरे उतरता है
कुएँ के अन्दर जाता है
नदी के किनारे पहुँचता है
शायद, ढूंढ़ता रहता है
रात के सीने में
अपना प्यार
वो चाँद
चढ़ता है पेड की बाँहों के ऊपर
पत्तियों पर
टहनियों पर
इधर–उधर
पहुँचता है हर घर की दहलीज़ पर
कोन–कोने में
खिड़कियों में
गलियों में
और दिखाई नहीं पड़ता फ़िर कहीं
ओ दिलरुबा
मेरे दिल के आकाश में पहुँचकर तुम
चमकते हो एक प्यारे से चाँद की तरह।