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प्यार / धनंजय वर्मा
Kavita Kosh से
इक पंछी परेवा
रंगीन परों वाला
वादी में मोहकता की
उड़ता फिरता है ।
दौड़ो तो
पकड़ने को,
भागता है ।
कभी-कभी
अयाचित अनचाहा
घुसता है कमरे में
हकालो तो बार-बार
मँडराता है
अहेतुक
टीसता है ।