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प्यार की नयी दस्तक / बशीर बद्र
Kavita Kosh से
प्यार की इक नई दस्तक दिल पे फिर सुनाई दी
चाँद सी कोई मूरत ख़्वाब में दिखाई दी
किसने मेरी पलकों पर तितलियों के पर रक्खे
आज अपनी आहत भी देर तक सुनाई दी
हम ग़रीब लोगों के आज भी वो ही दिन हैं
पहले क्या असीरी थी, आज क्या रिहाई दी
बारिशों के चेहरे पर आँसुओं से लिखना है
कुछ न कोई पढ़ पाए, ऐसी रोशनाई दी
ये तुनकमिज़ाजी तो ख़ैर उसकी आदत है
वर्ना उसने चाहत दी, हमको इन्तिहाई दी
ये तनाव क़ुदरत ने दो दिलों में क्यों रक्खा
मुझको कजकलाही दी, उसको कजअदाई दी