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प्यार की स्रोतस्विनी को आज प्रेयसी / अमरेन्द्र
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प्यार की स्रोतस्विनी को आज प्रेयसी
गोमुखी आँखों से अब बहने तो दो !
मूँद लो मत पलक पट केदार के ये
मत निहारो पैड़वा के नयन-शशि से
फुल्ल सरसिज से ही झरते हैं मधुर कण
इन्द्रधनु-से ये नयन तनने तो दो !
आज तक तुमने कहा, मैं चुप रहा हूँ
अपने अन्तर के दहन में ही दहा हूँ
मर न जाए प्यार की अनुभूतियाँ सब
मृत्यु-पथ का मैं पथिक, कहने तो दो !
प्राण का प्रण एक केवल-प्यार पाऊँ
तुम प्रणय की विश्वगंगा किधर जाऊँ
कौन जाने छूटकर जाना कहाँ हो
तुम धनुष पर तीर को सजने तो दो !