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प्यासा पंछी / रामावतार यादव 'शक्र'
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मैं युग-युग का प्यासा पंछी अब तक भी प्यास बुझा न सका!
1.
आए पावस रस-भार लिए,
चातक को जीवन-दान मिला!
आए वसंत मधुमास कई,
जग को मधु का आख्यान मिला!
कुसुमों का सुरभि-दान लखकर,
अलियों का मुद-त्यौहार हुआ!
कोयल के रसमय कंठों से
कण-कण में रस-संचार हुआ।
हँस पड़ी दूब, खिल गए फूल, पर मैं अपने को पा न सका!
मैं युग-युग का प्यासा पंछी अब तक भी प्यास बुझा न कस!