भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रकाश स्तंभ / राग तेलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहां जाना था,कहां आ गया ?

कितना जाना पहचाना-सा
मगर
है कितना शाश्वत
यह प्रश्न !

आलोड़ित होता
उनके ही भीतर
जिन्हें होती
चाह एक दिशा की
निरंतर

मंथन में रखता
जो स्वयं को
उस तक ही पहुंचता

हो चाहे वह
प्रश्न मार्ग का
या हो कोई
अभीष्ट ।