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प्रणय / विनोद शर्मा

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प्रिय!
प्रणय में-
अधूरेपन
अजनबीपन और उदासीनता को
कब तक हम ढोते फिरें?

क्यों न हम,
एक दूसरे की देह की बांसुरी में
अपनी-अपनी सांसों और धड़कनों के
स्वर भर दें?
जिएं या मरें
लेकिन प्यार तो करें।