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प्रतिनिधि / अच्युतानंद मिश्र

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जब डूब रहा था सब-कुछ
तुम अपने मज़बूत क़िले में बंद थे
जब डूब चुका है सब-कुछ
तुम्‍हारे चेहरे पर अफ़सोस है
तुम डूबे हुए आदमी के प्रतिनिधि हो....