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प्रतीक्षा / अज्ञेय
Kavita Kosh से
नया ऊगा चाँद बारस का,
लजीली चाँदनी लम्बी,
थकी सँकरी सूखती दीर्घा :
चाँदनी में धूल-धवला बिछी लम्बी राह।
तीन लम्बे ताल, जिन के पार के लम्बे कुहासे को
चीरती, ज्यों वेदना का तीर, लम्बी टटीरी की आह।
उमड़ती लम्बी शिखा-सी, यती-सी धूनी रमाये
जागती है युगावधि से सँची लम्बी चाह-
और जाने कौन-सी निव्र्यास दूरी लीलने दौड़ी
स्वयं मेरी निज लम्बी छाँह!
शिलङ्, 1945