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प्रभाती / मुकुटधर पांडेय
Kavita Kosh से
बीती अब रजनि, नींद तजिये मम प्यार
प्राची की छवि अपार
उषा करती विहार
दूर हुआ अन्धकार
मन्द हुए तारे
फैला रवि का प्रकाश
उज्वल दश दिशि अकाश
कर्म-खेत्र सहास
पहुँचे जन सारे
माया भ्रम नींद त्याग
कबके सब गये जाग
देखो जी कहा भाग
भ्रात हैं तुम्हारे
आँखे निज मूंद भले
जाते तुम आप छले
साथी तज साथ चले
आलस तुम धारे