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प्रभु! मेरो मन ऐसो ह्वै जावै / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
प्रभु! मेरो मन ऐसो ह्वै जावै।
विषयन को विष सगरो उतरै, पुनि नहिं कबहूँ छावै॥
बिनसै सकल कामना मनकी, अनत न कतहूँ धावै।
निरखत निरत निरन्तर माधुरि, स्याम मुरति सुख पावै॥
कामी जिमि कामिनि-सँग चाहै, लोभी धन मन लावै।
तिमि अबिरत निज प्रियतमकी सुधि, छिन इक नहिं बिसरावै॥
ममता सकल जगतकी छूटै, मधुर स्याम छबि भावै।
तव आनन-सरोज-रस-चाखन मन मधुकर बनि जावै॥