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प्रभुकी महत्ता और दयालुता / तुलसीदास/ पृष्ठ 3

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प्रभुकी महत्ता और दयालुता-2

 ( छंद 128, 129)

(128)

काढ़ि कृपान ,कृपा न कहूँ , पितु काल कराल बिलोकि न भागे।
 ‘राम कहाँ?’ ‘सब ठाऊँ हैं’, ‘खेभमें?’ ‘हाँ’ सुनि हाँक नृकेहरि जागे।

 बैरि बिदारि भए बिकराल, कहें प्रहलादहिकें अनुरागें।
प्रीति -प्रतीति बड़ी तुलसी, तबतें सब पाहन पूजन लागे।

(129)

अंतरजामिहुतें बड़े बाहेरजामि हैं राम, जे नाम लियेतें।
धावत धेनु पेन्हाइ लवाई ज्यों बालक-बोलनि कान कियेतें। ं

 आपनि बूझि कहै तुलसी, कहिबेकी न बाबरि बात बियेतें।
 पैज परें प्रहलादहुको प्रगटे प्रभु पाहनतें, न हियेतें।।