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प्रभो! कृपा कर मुझे बना लो / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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प्रभो! कृपा कर मुझे बना लो अपने नित्य-दासका दास।
सेवामें संलग्र रहूँ उल्लसित नित्य, मन हो न उदास॥
चिन्तन हो न कभी भोगोंका, नहीं विषयमें हो आसक्ति।
बढ़ती रहे सदा मेरे मन पावन प्रभु-चरणोंकी भक्ति॥
कभी न निन्दा करूँ किसीकी, कभी नहीं देखूँ पर-दोष।
बोलूँ वाणी सुधामयी नित, कभी न आये मनमें रोष॥
कभी नहीं जागे प्रभुता-मद, कभी न हो तिलभर अभिमान।
समझूँ निजको नीच तृणादपि, रहूँ विनम्र, नित्य निर्मान॥
कभी न दूँ मैं दुःख किसीको, कभी न भूल करूँ अपमान।
कभी न पर-हित-हानि करूँ मैं, करूँ सदा सुख-हितका दान॥
कभी न रोऊँ निज दुखमें मैं, सुखकी करूँ नहीं कुछ चाह।
सदा रहूँ संतुष्ट, सदा पद-रति-रत, बिचरूँ बेपरवाह॥
प्राणि-पदार्थ-परिस्थितिमें हो कभी न मेरा राग-द्वेष।
रहे न किंचित्‌ कभी हृदयमें जग-‌आशा-ममताका लेश॥
मस्त रहूँ मैं हर हालतमें, करूँ सदा लीलाकी बात।
देखूँ सदा सभी में तुमको, सदा रहे जीवन अवदात॥