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प्राण-पखेरू / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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1
प्राण -वर्तिका
निशदिन जलती
याद में तेरी।
2
प्राणहीन मैं
जब से छूटा हाथ
तुम्हारा साथ।
3
प्राण की रज्जु
मैंने बाँधी तुमसे
तुम जीवन !
4
नदी -किनारे
चक्रवाक युगल
प्राण विकल।
5
ब्रह्मरंध्र में
अनुनादित नाम
तुम्हीं हो प्राण !
6
द्रवित जल
उतरा शिखरों से
तुम्हीं तो हो न?
7
रक्त- शिराएँ
उद्वेलित हो उठीं
तुझे छू प्राण!
8
तुझमें डूबूँ
जब इस जग से
प्राण उड़ें ये।
9
तुम क्या जानों
जी लिया जो जीवन
प्राण तुम्हीं थे!
10
प्राण विकल
कब होगा तुमसे
महामिलन!
11
भारी अंधड़
तपता मरुथल
प्राण रुदन।
12
प्राण-पखेरू
उड़ा चीर अम्बर
काँपीं दिशाएँ