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प्रायोजक / स्वप्निल श्रीवास्तव

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एक साबुन के बारे में लगातार

बताया जा रहा है

कि वह साबुन नहीं है

निरन्तर प्रचारित किए जा रहे

झूठ के झाग में भीग रही है

स्वप्न-सुन्दरी की मांसल देह

उसके ऊपर चौरासी कैमरों की आँखें

विभिन्न मुद्राओं में झिलमिला रही हैं


चीज़ों के बारे में ग़लत बताया

जा रहा है

ताकि उसे सौवीं बार

सही सिद्ध किया जा सके


प्रायोजकों के इस खेल में

स्वप्न सुन्दरी भी सम्मिलित है


वह नहीं जानती, उसे एक दिन

उसके नाम से नहीं पुकारा जाएगा

वह टेलिविजन के सामने होगी

और बताया जाएगा--

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