प्रारम्भ / मारिन सोरस्क्यू / मणि मोहन मेहता
अक्सर शुरुआत ही ग़लत हुई
धमाके की आवाज़ तेज़ नहीं थी
या सुनी नहीं गई,
बार-बार अपने स्थान पर वापिस भेजे जाने से
प्रतियोगी इतने विचलित हुए
कि वे उपद्रव पर उतारू हो गए
राख से लथपथ, तुड़ा लिए अपने पैर
और दर्शकों की आँखों में रेत झोंक दी ...
दौड़ का मैदान और पूरा स्टेडियम
रक्तरंजित हुआ
शुरूआत ग़लत हुई बारम्बार।
हुआ कुछ यूँ एक बार
कि वह आदमी जिसके हाथ में बन्दूक थी
आने वाले ख़तरे से भयभीत
उसने हवा में गोली चलाने की जगह
अपना ही भेजा उड़ा लिया
और जैसे कोई चमत्कार हुआ
तमाम धावक जीत गए।
इस बन्दूकची की मौत पर
शायद ही किसी ने ध्यान दिया।
तभी से यह परम्परा बन गई है
जो भी इस खेल का आगाज़ करता है
अपने सिर से सटा लेता है बन्दूक।
जिस हथियार की वजह से आए ढेरों स्वर्ण पदक
अब मेरे हाथ में है।
तमाम धावक तैयार हैं
चाक लाइन पर टिके हैं उनके बाएँ घुटने
आँखें तैयार
नथूने थरथराते हुए।
सिर्फ आगाज़ के धमाके का इन्तज़ार है...
अब सब कुछ मुझ पर निर्भर है।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन मेहता’