भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रिया / प्रभात पटेल पथिक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हवाओं! आज तुम में ये
महक इतनी कैसे आई।
बेशक छू के आयी हो
जुल्फें मेरे दिलबर की।

चलो इतना तो बतला दो-
पता, रहती कहाँ है वो।
जहाँ पर तुम मिले थे, उस
गली, घर का पता तो दो।

मिली थी जब तू उससे तो
थी चेहरे की कैसी रंगत।
खुश थी या ख़फ़ा थी वो
बता, तुझसे तो है संगत।

चेहरे में अभी तक था
क्या उसके गुलाबीपन?
क्या बाँकी है अभी उसमे,
वही तत्क्षण जवाबीपन?

वो कैसी है, कहाँ पर है?
मुझे उसका पता दो न।
वो किस हालात में जिंदा?
मुझे कुछ तो बता दो न।

इधर से जब भी लौटो तुम,
ये चिट्ठी मेरी ले जाना।
प्रिया का मेरे प्रतिउत्तर
जरा तुम दौड़ कर लाना।