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प्रिये ! / उमा शंकर सिंह परमार
Kavita Kosh से
हे प्रिये !
विकास के प्यालों मे
ये जो उँड़ेली जा रही हैं
राष्ट्रवादी शराब
आश्वासनों के साथ पिलाकर
मदहोश करके
तुम्हारे जिस्म को
बाँहों मे समेटकर
ख़ूनी चुम्बनों से
लहूलुहान कर देने की
सुनिश्चित प्रक्रिया है
अफ़वाहों की रगड़ से
चमकते चेहरे
तुम्हारे हाथों मे रखकर हाथ
उनकी आँखो का
किया गया नाजुक वादा
तुम्हारी आँखों मे उतरकर
जिस्म पा जाने की
पुरानी कला है