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प्रीति की प्रतिमा कीर्ति-कुमारी / स्वामी सनातनदेव

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राग शुद्धसारंग, तीन ताल 31.7.1974

प्रीति की प्रतिमा कीर्तिकुमारी।
परमानन्दमूर्त्ति मनमोहन, तिनहुँ की आनन्दिनि प्यारी॥
रसमय स्यामहुँ की रसदायिनि, चिन्मयिमूर्ति त्रिगुन तें न्यारी।
रसिकन के जीवननिधि मोहन, तिनहुँ की जीवननिधि सारी॥1॥
निरवधि प्रीति-सुधा-रस बरसिनि, महाभावमूरति अविकारी।
रसरंगिनि, मनमोहन-संगिनि, सुखमा-सील सिन्धु सुखकारी॥2॥
सखि-परिकर की प्रानपोसिनी, भक्तन की निजनिधि अनिवारी।
उमा-रमा ब्रह्मादि-सेविता, मूर्तिमती मृदिमा मुदकारी॥3॥
अग-जग-प्रभव-विभव क्षयकारिनि<ref>चराचर की उत्पत्ति स्थिति और संहार करने वाली</ref> जगतारिनि, भव-भय क्षयकारी।
रतिरंजिता, रास-रस-रसिका, कोटि-कोटि रति-मति-गतिहारी॥4॥
निज पद-प्रनत-सकल-भयहारिनी<ref>अपने चरणों की शरण लेने वालों के संपूर्ण भयांे का क्षय करने वाली</ref> वरदायिनि, वृषभानु कुमारी।
रति-रसहीन दीन जनकों अब निजपद-रति दै करहु सुखारी॥5॥

शब्दार्थ
<references/>