भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेमगाथा / अजय कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


प्रेम
एक कमरे को
कैनवास में तब्दील कर के
उसमें आंक सकता है
एक बादल
जंगल में नाचता हुआ मोर
एक गिरती हुई बारिश
देवदार का एक पेड़
एक सितारों भरी रेशमी रात
एक अलसाई गुनगुनाती सुबह
समंदर की लहरों का
मदमदाता शोर

प्रेम एक गलती को
दे सकता है पद्म विभूषण
एक झूठ को
सहेज कर रख सकता है आजीवन
एक पराजय का
सहला सकता है माथा
और हर प्रतीक्षा का
कर सकता है आलिंगन

पर प्रेम की नदी में
अपमानों से बन सकतें है भंवर
उपेक्षाओं से पड़ सकती हैं
अदृश्य गांठें
तिरस्कारों से बेसुरा हो सकता है
उसके भीतर बजता
राग यमन कल्याण

कोई भी प्रेम
बस अपनी अवेहलना नहीं भूलता
सिर्फ भूलने का
एक अभिनय कर सकता है
जिसका कभी भी हो सकता है
आकस्मिक पटाक्षेप
आप यह याद रखिए