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प्रेमपुर / दिनेश कुमार शुक्ल
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तिवारीपुर नहीं
प्रेमपुर नाम था तब उस गाँव का
गंगा नहाने जाने के रास्ते पर
पहले आती एक अमराई
फिर पथिक जी की कुटी
और तब आती बगिया अमरूदों की
अमरूदों पर
लाल-बुंदकियाँ छिटककर छिंगुनी से
अमरूदों की मिठास में घुलकर विलीन हो जाती थीं
वे
जो धीरे-धीरे गुनगुनाना सीख जाती थीं
या वे
जो पहली बार देखती थीं चंद्रग्रहण
या वे,
जो सूर्य के दर्पण में देख लेती थीं अपना प्रतिबिंब
वे बाँस की पत्तियों सी धीरे-धीरे पीली पड़ती जाती थीं
और जिस रात ऐसा होता
उस रात की सुबह का सूर्य
उदय होते ही उसी जगह द्रवीभूत पृथ्वी में डूब जाता था
अमरूदों की बगिया को पार करते ही
आता था प्रेमपुर गाँव
वह गाँव, हममें से किसी ने कभी नहीं देखा