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प्रेम की वैतरणी / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
जहाँ है आदि-अन्त
वहीं है आवागमन
जैसे कि जीवन में
अनन्त में होता है केवल प्रवेश
होता ही नहीं कोई निकास
पार पाया नहीं जा सकता
जैसे प्रेम में
प्रेम की भी
एक वैतरणी होती है
जिसका दूसरा तट नहीं होता