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प्रेम के पक्ष में / अनुराधा ओस
Kavita Kosh से
जो तुमसे होकर
मुझ तक आती है
जो डोर-सी लगती है
जो पुल-सी लगती है
जो भीगी-सी लगती है
किसी धरासार बारिश में
प्रेम में भीगे हुए
पूरी दुनिया दिखती है प्रेमपत्र सी
क्योंकि उनके शब्दकोश
हिंसा के लिए जगह
नही रखते
जब कभी तुम्हें
चुनना पड़े प्रेम और हिंसा तो
लिखना जरूर प्रेम के
पक्ष में
क्योंकि प्रेम ही बचा
ले जाएगा
वो भी लिखना जो
अलिखित हो अभी तक
सोचना उसके लिए
जो तुम्हारी राह
देख रहा हो बड़े
धैर्य से॥