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प्रेम त्रिकोण / विशाखा मुलमुले
Kavita Kosh से
अपने परिक्रमा पथ में होकर भी
तेरी ओर झुकी मैं वर्तमान में
तुझसे दूरस्थ दूरी पर स्थित हूँ
एक ओर है तेरा आकर्षण
दूजी ओर मेरा गुरुत्वाकर्षण
परिदृश्य में दीखते परिक्रमा करते ऊर्जावान कई और पिंड हैं
तीजी ओर
मन और चन्द्र की युति है
और यह बात जग प्रसिद्ध है
उफ्फ ! प्रेम त्रिकोण में बंधे हम आकाशीय पिंड
और हमारे पैरों तले जमीं भी नहीं है !
पर क्या इस वज़ह से निराधार रह जाएगा हमारा प्रेम ?