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प्रेम देवता / दीनानाथ सुमित्र
Kavita Kosh से
प्रेम हृदय की प्यास बुझाता है
वह अधरों से गीला चंदन रोज लगाता है
प्रेम देवता मन में बसता
बिना रोक के हर-पल हँसता
इंद्रधनुष-सा रंग रँगीला
सबको भाता है
प्रेम हृदय की प्यास बुझाता है
वह अधरों से गीला चंदन रोज लगाता है
जीवन प्रेम बिना क्या जीवन
प्रेम चाहता सिर्फ समर्पण
प्रेम हमें आधा से पूरा
रोज बनाता है
प्रेम हृदय की प्यास बुझाता है
वह अधरों से गीला चंदन रोज लगाता है
कभी प्रेम को गले लगाकर
कभी विरह में रोदन-गाकर
सुख-दुख के दोनों पक्षों को
खूब सुनाता है
प्रेम हृदय की प्यास बुझाता है
वह अधरों से गीला चंदन रोज लगाता है