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प्रेम बंधन / सुजान-रसखान
Kavita Kosh से
सवैया
चंदन खोर पै चित्त लगाय कै कुंजन तें निकस्यौ मुसकातो।
राजत है बनमाल गले अरु मोरपखा सिर पै फहरातो।
मैं जब तें रसखान बिलोकति हो कजु और न मोहि सुहातो।
प्रीति की रीति में लाज कहा सखि है सब सों बड़ नेह को नातो।।136।।
कौन को लाल सलोनो सखी वह जाकी बड़ी अँखियाँ अनियारी।
जोहन बंक बिसाल के बाननि बेधत हैं घट तीछन भारी।
रसखानि सम्हारि परै नहिं चोट सु कोटि उपाय करें सुखकारी।
भाल लिख्यौ विधि हेत को बंधन खोलि सकै ऐसो को हितकारी।।137।।