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फरिश्ता / बीना रानी गुप्ता
Kavita Kosh से
भोर की पहली किरण मुस्कराई
चुपके से कान में गुनगुनाई
बोली, आने वाला है कोई..
कोंपले नींद से जागीं
कलियां हैं खिलखिलायीं
बोलीं, आने वाला है कोई..
चिरैया डाल-डाल कूदी
दिशाएं विहाग राग से गूंजी
बोलीं, आने वाला हैं कोई..
झरने की धार है बहकी
पहाड़ी नभ छूने को चहकी
बोलीं, आने वाला है कोई..
जग का अणु-अणु महके
नेह से घर आंगन चहके
‘फरिश्ता’ आने वाला है कोई।