फ़कीरों की सदा-2 / नज़ीर अकबराबादी
बटमार<ref>रास्ते में लुट लेने वाला, वटपरा</ref> अजल<ref>मौत</ref> का आ पहुंचा, टुक इसको देख डरो बाबा।
अब अश्क बहाओ आंखों से और आहें सर्द भरो बाबा।
दिल हाथ उठा इस जीने से बस मन मार मरो बाबा।
जब बाप की ख़ातिर रोते थे, अब अपनी ख़ातिर रो बाबा।
तन सूखा कुबड़ी पीठ हुई, घोड़े पर ज़ीन धरो बाबा।
अब मौत नक़ारा बाज चुका, चलने की फ़िक्र करो बाबा॥
अब जीने को तुम रुख़सत दो मरने को मेहमान करो।
खैरात करो एहसान करो, या पुन्न करो या दान करो।
या पूड़ी लड्डू बनवाओ, या ख़ासा हलुवा नान करो।
कुछ लुत्फ़ नहीं अब जीने का, अब चलने का सामान करो।
तन सूखा कुबड़ी पीठ हुई, घोड़े पर ज़ीन धरो बाबा।
अब मौत नक़ारा बाज चुका, चलने की फ़िक्र करो बाबा॥
दिल को तो उबाओ जीने से अब और गले को मत काटो।
अब चाह फ़ना की टुक चक्खो और खू़न किसी का मत चाटो।
धुन छोड़ो हिस्से बख़रे की और भाजी अपनी तुम बाटो।
नाकंद बछेड़े कूद चुके अब और दुलत्ती मत छांटो।
तन सूखा कुबड़ी पीठ हुई, घोड़े पर ज़ीन धरो बाबा।
अब मौत नक़ारा बाज चुका, चलने की फ़िक्र करो बाबा॥
यह अस्प बहुत कूदा उछला, अब कोड़ा मारो जे़र करो।
जब माल इक्ट्ठा करते थे, अब तन का अपने ढेर करो।
गढ़ टूटा, लश्कर भाग चुका, अब म्यान में तुम शमशेर करो।
तुम साफ़ लड़ाई हार चुके, अब भागने में मत देर करो।
तन सूखा कुबड़ी पीठ हुई, घोड़े पर ज़ीन धरो बाबा।
अब मौत नक़ारा बाज चुका, चलने की फ़िक्र करो बाबा॥
सर कांपा, चांदी बाल हुए, मुंह पोला, पलकें अपन झुकीं।
कद टेढ़ा, कान हुए बहरे और आंखें भी चुंधियाय गयीं।
सुख नींद गई और भूख घटी, दिल सुस्त हुआ आवाज़ महीं।
जो होनी थी सो हो गुजरी, अब चलने में कुछ देर नहीं।
तन सूखा कुबड़ी पीठ हुई, घोड़े पर ज़ीन धरो बाबा।
अब मौत नक़ारा बाज चुका, चलने की फ़िक्र करो बाबा॥
या पांव घिसट कर चलने से, मत रस्ते को हैरान करो।
और पोपले मुंह से रोटी को मत मल-मल कर हलकान करो।
अब आप हुए तुम पानी से मत पानी का नुकसान करो।
कुछ लाभ नहीं है जीने में अब मरने से पहचान करो।
तन सूखा कुबड़ी पीठ हुई, घोड़े पर ज़ीन धरो बाबा।
अब मौत नक़ारा बाज चुका, चलने की फ़िक्र करो बाबा॥
गर अच्छी करनी नेक अमल, तुम दुनियां से ले जाओगे।
तो घर अच्छा सा पाओगे और सुख से बैठे खाओगे।
और ऐसी दौलत छोड़ के तुम जो खाली हाथों जाओगे।
फिर कुछ भी नहीं बन आवेगी, घबराओगे, पछताओगे।
तन सूखा कुबड़ी पीठ हुई, घोड़े पर ज़ीन धरो बाबा।
अब मौत नक़ारा बाज चुका, चलने की फ़िक्र करो बाबा॥
यह उम्र जिसे तुम समझे हो, यह हर दम तन को चुनती है।
जिस लकड़ी के बल बैठे हो, दिन रात यह लकड़ी घुनती है।
तुम गठरी बांधो कपड़े की और देख अजल सर धुनती है।
अब मौत क़फ़न के कपड़े की यां ताना बाना बुनती है।
तन सूखा कुबड़ी पीठ हुई, घोड़े पर ज़ीन धरो बाबा।
अब मौत नक़ारा बाज चुका, चलने की फ़िक्र करो बाबा॥
घर बार रुपै और पैसे में, मत दिल को तुम ख़ुरसन्द करो।
या गोर बनाओ जंगल में, या जमुना पर आनन्द करो।
मौत आन लताड़ेगी आखि़र, कुछ मक्र करो या फंद करो।
बस खू़ब तमाशा देख चुके अब अपनी आँखें बंद करो।
तन सूखा कुबड़ी पीठ हुई, घोड़े पर ज़ीन धरो बाबा।
अब मौत नक़ारा बाज चुका, चलने की फ़िक्र करो बाबा॥
यह ऊंट किराये का यारो, सन्दूक, जनाजा, अर्थी है।
जब हो उस पर असवार चले फिर घोड़ा है ने हस्ती है।
किस नींद पड़े तुम सोते हो, यह बोझ तुम्हारा भारी है।
कुछ देर नहीं अब आह ‘नज़ीर’ तैयार खड़ी असवारी है।
तन सूखा कुबड़ी पीठ हुई, घोड़े पर ज़ीन धरो बाबा।
अब मौत नक़ारा बाज चुका, चलने की फ़िक्र करो बाबा॥