भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फ़ाइलों से जूझता शख़्स / सुरजीत
Kavita Kosh से
|
रोज़ सूरज
समुन्दर में जा गिरता है
रोज़ चन्द्रमा
रात से मिलता है
रोज़ पखेरू
पंख फड़फड़ाता हुआ
घर को लौटता है !
एक शख़्स
अभी भी
दफ़्तर की
फ़ाइलों से जूझता
भूल गया घर का रास्ता ।