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फ़ासिल / अजित कुमार
Kavita Kosh से
वे कह रहे थे- फ़ासिल
मैं देख रहा था- फ़ासले
तुम सुन रहे थे- फ़ैसले
बसी हुई दुनियाएँ
जब उजड़ती और मिटती हैं
फ़ासले और फ़ैसले
आख़िरकार
फ़ासिलों में ही तो
ढलते हैं ।