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फाँसी की सज़ा से लौटे हुए को / लाल्टू
Kavita Kosh से
क्या तुम्हें अँधेरे में रेलगाड़ी की आवाज़ सुनाई देती थी?
क्या तुम्हें सपनों में पेड़ दिखाई देते थे?
पेड़ों के पत्तों की गपशप तुम तक पहुँचती होगी
तुम उससे कविताएँ सुनते होगे
सुनकर वैसे ही हँसते होगे – हा, हा, हा!
हर रात एक चीता आकर तुम्हें जगाता होगा
खींच ले जाता होगा
क्यों हा हा हँसे तुम
कहता हथौड़ा मारता होगा मेज पर
मृत्युदण्ड, मृत्युदण्ड.
क्या तुम्हारी आँखें अब चौंधियाती हैं?
क्या तुम गुलाम लोगों को सपने बेचते हो?
क्या हर गुलाम तुम्हारे साथ हँसेगा?
तिरछी मुस्कान में क्या तुम किसी को दे रहे हो मृत्युदण्ड?