फाँस / सुरेन्द्र स्निग्ध
— हुज़ूर, वह जो लौण्डा है,
डी० के० अगरवाल,
बड़ा लोभी है, हुज़ूर !
प्रौढ़ शिक्षा के डायरेक्टर की पोस्ट के लिए
कर दिया है अप्लाई !
आपसे पूछे-जाँचे बिना, सर !
आपने उसे बना दिया है —
यूनिवर्सिटी में एक बड़ा अधिकारी
आपने उसे बनवा दिया —
रिलीफ कमिटी का मैम्बर,
बैंकिंग भर्ती बोर्ड का सदस्य
सभी जगह तो आपने उसे
डलवा ही दिया हुजूर !
अब देखिए न !
अब देखिए न,
आपकी ही जड़ खोद रहा है वह !
मैं तो आपका दास हूँ,
आप ही ने मुझे बनवाया है
डायरेक्टर,
कब सेवा नहीं की मैंने
हाज़िर रहता हूँ माल-मैटेरियल के साथ,
सामाजिक न्याय तो आप सबको दे रहे हैं
वह करने लगा है आपके साथ ही विश्वासघात !
मैंने क्या नहीं किया हुज़ूर,
कब नहीं दिया पार्टी फ़ण्ड में पैसा
दिल्ली के लिए हवाई जहाज़ का टिकट कटवाकर
रहता हूँ मुस्तैद !
— शराब से लेकर एक से एक नायाब चीज़ पहुँचाई है, सर !
मेरी रक्षा आप ही कीजिएगा हुजूर !
आचानक टूटती है नेताजी की तंद्रा
— अरे, साला बनियावाँ
चालू बन रहा है —
कितना पैसा कमाना चाह रहा है एक साथ !
सुनते हैं, साला वह
कालेज का एडमिशन इँचार्ज भी है —
यूनिवर्सिटी का है स्पोर्ट्स-सिक्रेटरी
इण्टर कांसिल में है टेबुलेसन सेण्टर का कॉर्डिनेटर !
तीन-चार होस्टलों का है सुपरिटेण्डेण्ट....
कितनी-कितनी जगह टाँग पसारेगा, साला.....
अभी उसको करा देते हैं अहसास
तुरन्त करा देते हैं अहसास !
— क्या समझता है, शिक्षा मन्त्री है उसका बाप ?
साले,उस मंत्री को भी बता देते हैं उसकी
औकात !
लाओ तो फ़ोन
लगाओ तो नम्बर...
— हैलो.... मन्त्री जी को दो फ़ोन...
हेलो, तर्वे जी,
आज जतियारी करते हैं, जतियारी
आप इतना चाह रहे रविकंश को —
— जानते हैं न, वह हरिजन है,
मुख्यमन्त्री का आदमी है
उसको ’टच’ नहीं कीजिएगा,
और अगर उस अगरवाल के बच्चे का
आपने लिया पक्ष
तो समझ लीजिए —
मुझसे बुरा कोई नहीं होगा ।
रखकर फ़ोन नेताजी लेते हैं गहरी साँस
इस तरह रविकांश ने लिया उन्हें है फाँस ।