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फागुन मस्त महीना ऐलै / अंगिका लोकगीत
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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फागुन मस्त महीना ऐलै
फागुन मस्त महीना ऐलै मारे कनक पिचकारी
कन्हैया खेलै बिरज में होली, कन्हैया खेलै बिरज में होली
घर से निकली राधा गोरी
घर से निकली राधा गोरी दियो लाल रंग डारी
कन्हैया खेलै बिरज में होली, कन्हैया खेलै बिरज में होली
लाली रंग डालो रे गुलाबी रंग डालो
पीली रंग डालो रे सबुज रंग डालो
काहे करत बरजोरी कन्हैया काहे करत बरजोरी
कन्हैया मारे कनक पिचकारी
कन्हैया खेलै बिरज में होली, कन्हैया खेलै बिरज में होली
छोड़ो छोड़ो अरे कान्हा चुनरी हमारी
फट गई चुनरी रे फट गई सारी
कस कर बहियाँ मरोरी कन्हैया कर कर बहियाँ मरोरी
कन्हैया मारे कनक पिचकारी
कन्हैया खेलै बिरज में होली, कन्हैया खेलै बिरज में होली