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फिर है कोशिश उसे भुलाने की / रंजना वर्मा
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फिर है कोशिश उसे भुलाने की।
ख़्वाब फिर से नये सजाने की॥
चाँद पर जख़्म हो गया देखो
चुभ गयी है नज़र ज़माने की॥
रात आधी में बजाये वंशी
श्याम को लत लगी सताने की॥
लोग हैं रोज़ बनाते रिश्ते
सोचते ही नहीं निभाने की॥
कर रहा वह हज़ार वादे क्यों
जिसकी आदत है भूल जाने की॥
दर्द बढ़कर है दवा बन जाता
बात है ये किसी फ़साने की॥
सूख पाता न अश्क़ का दरिया
कोशिशें फिर भी मुस्कुराने की॥