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फूलों से बतियाये देर हुई / कुमार रवींद्र
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फूलों से बतियाये
सजनी, देर हुई
वह जो जोड़ा बैठा
घाटी में नीचे
क्या हम-तुम हैं? -
देखो वे आँखें मींचे
छुईं उँगलियाँ
दोनों की मिट गई दुई
यह जो है रोमांस हवा में -
हमने सिरजा कल
फूलों से भर गया तभी था
घाटी का आँचल
बादल है वह
या है धुनकी हुई रुई
हम लौटे हैं
कई बरस के बाद इधर
पत्थर-हुए शहर में लीं
साँसें बंजर
फटी चदरिया
सिली जतन से - चुभी सुई