बंजर मन पर प्रेम सघन घन / रंजना वर्मा
बंजर मन पर प्रेम सघन घन
बिन मौसम बरसात कर गये॥
तुम क्या आये आशाओं की
सूखी कलियाँ हरी हो गयीं।
अमित हर्ष से मन की सारी
सूनी गलियाँ भरी हो गयीं।
बिन बोले ही तुम नयनो से
जाने कितनी बात कर गये।
बंजर मन पर प्रेम सघन घन
बिन मौसम बरसात कर गये॥
सूने घर आँगन देहरियों
पर कितने ही दीप जल गये।
जाने कितने जन्मों के
संचित सब मेरे पुण्य फल गये।
जीवन की इस घिरी अमावस
को पूनम की रात कर गये।
बंजर मन पर प्रेम सघन घन
बिन मौसम बरसात कर गये॥
यादों के पाथेय सहेजे
जिस पथ चलती रही निरंतर,
फूल प्यार के बिखरा तुमने
छेड़ दिया मादक वंशी स्वर।
मुग्ध मूक मन के मृदंग पर
हल्का-सा आघात कर गये।
बंजर मन पर प्रेम सघन घन
बिन मौसम बरसात कर गये॥
उखड़ी साँसों को मेरी तुम
पिला गये जीवन कस्तूरी।
पल भर में ही मिटा गये तुम
धरा और अंबर की दूरी।
वर्षों का व्याकुल विछोह था
मधुर मिलन सौगात कर गये
बंजर मन पर प्रेम सघन घन
बिन मौसम बरसात कर गये॥