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बंजारे की पीठ / वीरा
Kavita Kosh से
वह
नंगी और साँवली पीठ
उठ पाने की लालसा में
बरसती धूप में झुकी
ठीक वैसी ही लग रही है
जैसे
तपते हुए काली मिट्टी के खेत
कि जब बरसेगा पानी
तो
ज्वार के ठूंठ
आठ महीने की बेबसी के बाद
उमगते
हरे पौधों में
तब्दील हो जाएंगे