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बंदर मामा / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
बंदर मामा ऐलोॅ छै,
सगरोॅ धूम मचैलेॅ छै।
कखनूँ चढ़ी झरोखा पर
कखनूँ देहरी मोखा पर,
दाँत दिखावै किटकिट करै
भागै ऐंगना दुआरी पर।
हाँसै बुतरू उछलै छै,
बंदर मामा ऐलोॅ छै।
रूप प्यारोॅ ओकरोॅ लागै
भूरोॅ धूसर बमभोकरोॅ लागै,
थप्पड़ मारै छै मांछी पर
उछलै गाछी-गाछी भागै।
लागै बड्डी रिसियैलोॅ छै,
बंदर मामा ऐलोॅ छै।
साथ बनरिया भी एैली छै
साथ छोड़ी काहूँ नै गेली छै,
मामा के देहोॅ पर कूदै-उछलै
लागै जेना उमतैली छै।
प्रेम भाव से मामी के मन
नाची-थिरकी गेलोॅ छै,
बंदर मामा ऐलोॅ छै।