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बचपन की झलक / तारादेवी पांडेय
Kavita Kosh से
इन झिलमिल तारों की,
जो प्रथम झलक है दिखती।
बस उसी समय में केवल,
शैशव की गाथा लिखती॥
जब भव्य ज्योति शिशु शशि की,
कलियों का चुम्बन करती।
उनकी उस मुस्काहट में,
शिशुओं की हँसी चमकती॥
प्रिय इन्द्र-धनुष की तो हाँ,
मैं मधुर-मधुर छवि लखती।
अपने खोये बचपन का,
क्षण-भर दर्शन हूँ करती॥
ये छोटी-छोटी चिड़ियाँ,
उड़-उड़कर गाना गातीं।
मैं उसमें भी अपनी ही,
शैशव की तान मिलाती॥
फिर तुहिन-विन्दु शिशु कुल की,
कोमल सिसकी सुन पाती।
मुझको अपने बचपन की,
वह मीठी याद दिलाती॥
उस बाल्यकाल की स्मृतियाँ,
सुधि सी है छाई जाती।
मैं बहुत खोजने पर भी,
बस एक झलक ही पाती॥