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बचपन - 20 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
प्रभात की किरणों की तरह ही
बचपन का उदय होता है
इन दोनों में बहुत
करीब की समानता है।
बचपन उतना ही
कोमल और सुंदर होता है
जितनी की प्रभात की किरणें
शीतल और रमणीक होती हैं।
उसके पश्चात जैसे-जैसे
सूरज की किरणों में तेज आता है
वैसे-वैसे ही बचपन
जीवन की राह पर
जवान होता चला जाता है।
इनकी गति का अनुपात
यदि मैं कहूँ
रेल की पटरियों की तरह
समान्तर है
शायद गलत नहीं होगा।
यदि नहीं मानते,
अपने बचपन और प्रभात के
इस अनुपात का
अध्ययन करो।
देखोगे, यह गणित का प्रश्न
आपके जीवन के
कितने ही समीकरणों का
उत्तर होगा।