भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बचपन - 5 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
जब बचपन याद आता है
चारों तरफ जमघट हो जाता है
अनगनित प्रश्नों का।
एक तरफ है, मानव का अहं
दूसरी तरफ है, बचपन का भोलापन।
एक तरफ है, बचपन का अपनापन
दूसरी तरफ है, मानव का छल।
एक तरफ है मानव का अपना स्वार्थ
दूसरी तरफ है, बचपन का यथार्थ।
एक तरफ है, बचपन की गहनता
दूसरी तरफ है, मानव का उथलापन।
एक तरफ है, मानव का काल्पिनिक भविष्य
दूसरी तरफ है, बचपन का वास्तविक वर्तमान।