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बचे हुए रंगों में से / कुँअर रवीन्द्र
Kavita Kosh से
बचे हुए रंगों में से
किसी एक रंग पर
उँगली रखने से डरता हूँ
मैं लाल, नीला केसरिया या हरा
नहीं होना चाहता
में इन्द्रधनुष होना चाहता हूँ
धरती के इस छोर से
उस छोर तक फैला हुआ