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बच्चे बड़े हो रहे हैं / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
कबूतरी के बच्चे बड़े हो रहे हैं
मेरी आँखों के सामने
बच्चे को बड़ा होते देखना
एक महीन अनुभव से गुज़रना है
बच्चे को बड़े होते देखना
दुनिया को निरंतर संभव होते देखना है
बच्चे को बड़े होते देखना
अपने अतीत की किन्हीं
गलियों में लौटना है
बच्चे को बड़े होते देखना
अपने बचपन को
फिर से जीना है।
आदमकद कूलर
अब एक माँ और उसके बच्चों का
घर है
आदमकद कूलर
कबूतरी के संसार का
सुरक्षा-कवच है
कबूतरी अब निडर है
वह बैठती है निडर भाव से
कूलर के मुहाने पर
और नहीं डरती
एक मनुष्य की उपस्थिति से
उसे अब सिर्फ़ फ़िक्र है
अपने बड़े हो रहे बच्चों की
और वह निडर होकर
मेरी आँखों में आँखें डालकर देखती है
कबूतरी को इस तरह से बेख़ौफ होते
मैंने पहले कभी नहीं देखा।