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बड़ा जबसे घराना हो गया है / समीर परिमल
Kavita Kosh से
बड़ा जबसे घराना हो गया है
ख़फ़ा सारा ज़माना हो गया है
हुई मुद्दत, किये हैं ज़ब्त मोती
निगाहों में ख़ज़ाना हो गया है
जड़ें खोदा किये ताउम्र जिसकी
शजर वो शामियाना हो गया है
करेंगे ख़र्च अब जी भर के यारों
बहुत नेकी कमाना हो गया है
मुहब्बत की नज़र मुझपे पड़ी थी
वो ख़ंजर क़ातिलाना हो गया है
हमें फ़ुरसत कहाँ अब शायरी से
बड़ा अच्छा बहाना हो गया है
दिवाली-ईद पर भाई से मिलना
सियासत का निशाना हो गया है
चलो परिमल की ग़ज़लें गुनगुनायें
कि मौसम आशिक़ाना हो गया है