भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बड़ा सूनापन है तुम्हारे बिना / रविकांत अनमोल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़ा सूनापन है तुम्हारे बिना
उदास आज मन है तुम्हारे बिना

वो ताज़ा हवाओं के झोंके नहीं
अजब सी घुटन है तुम्हारे बिना

नहीं अब वो दर्दे-जुदाई नहीं
मगर इक चुभन है तुम्हारे बिना

बरसते हैं सावन में बादल मगर
तरसते नयन है तुम्हारे बिना

ये सर्दी की ठिठुरी हुई चाँदनी
सुलगती अगन है तुम्हारे बिना

वही ज़िन्दा-जावेद<ref>जीता-जागता</ref> 'अनमोल' है
मगर बेसुख़न<ref>चुपचाप,जो बात नहीं करता</ref> है तुम्हारे बिना
                               

शब्दार्थ
<references/>