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बड़ा होने से डरता है / कल्पना मिश्रा
Kavita Kosh से
वो एक अल्हड़ सी उम्र
वो एक मासूम सा दिल
वो बड़े मीठे स्वप्न
वो कुछ बिना तर्क की बातें
वो कुछ दुःसाहस से भरे फैसले
और उनमें अड़े रहने की जिद
वो सरल से जवाब और उलझे हुए सवाल
वो ऐसे देखना चाँद को
जैसे कुछ छिपा हो उसमें
वो खरीद के कार्ड उसमें
शायरियाँ सजाना
वो कह देना हँस के
जो भी हो दिल में
वो भूल जाना अक्सर
कि यथार्थ बहुत ही कड़वा है
वो कहकहे नादानी के
हँसी, ठिठोली
वही उम्र है सच्ची जिसमें छिपी है मीठी गोली
जो बीत जाएगी वो
तो ढूँढोगे खुद को
तब मिलेगा एक शख्स
जो छिपा है तुम्हीं में पर तुमसे जुदा है
बचा लो अगर कुछ बचपन है बाकी
सुना दो अगर प्रेम की एक कथा है।