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बत्तख / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
खूब झखाझक गोरी बत्तख,
दिन-भर करती रहती चख-चख।
पीली-पीली चोंच नुकीली,
गर्दन लंबी हैं फुर्तीली।
पंजे जालीदार सजीले,
फड़-फड़ पंख सुखाती गीले।
मछली-वछली छत कर जाती,
तैर-तैर कर मौज मनाती।